खाने के लिए तो समय निकालो, भाई!
एक बार मेरे कार्यस्थलों में से एक संस्थान में वहाँ के एक डीन ने हमारे विभाग के कुछ लोगों को किसी चर्चा के लिए बुलाया. वहाँ पहुँचकर पता चला सर भोजन कर रहे थे. हमने उनके निजी सचिव से पूछा कि हम कितनी देर बाद आएँ, तो उन्होंने डीन से पूछा. डीन ने हमें अंदर आने के लिए कहा.

वे भोजन कर रहे थे, तो हमने इंतज़ार करना सही समझा. लेकिन उन्होंने हमें चर्चा शुरू करने को कहा. हमें अटपटा लगा, लेकिन फिर भी हमने चर्चा शुरू की. मैंने देखा कि वे रोटी, सब्ज़ी, दही, और ककड़ी खा रहे थे. उस समय उनकी सालाना तनख़्वाह 40-42 लाख रुपए थी. 10 साल पहले. आज के हिसाब से एक करोड़. लेकिन एक करोड़ कमाने वाला भी खा वही रहा है जो एक आम बंदा खाता है. लेकिन आम बंदा तो फिर भी समय निकाल लेता है खाने के लिए, अमीरों को तो खाना भी समय की बर्बादी लगती है.

हर जगह लगभग यही मचा हुआ है. लोग भूल ही गए हैं कि वे कमा किसलिए रहे हैं. खाना और सोना जो कि सबसे ज़रूरी चीज़ें है, इनके प्रति ये तथाकथित सफल और समृद्ध लोग कितनी लापरवाही बरतते हैं. फिर बीमार पड़ते हैं, कहीं यहाँ दर्द, कहीं वहाँ दर्द. फिर इस डॉक्टर के पास भागो, कभी उस डॉक्टर के पास भागो. थका हुआ, बोझिल जीवन हो जाता है. किसी चीज़ में मन नहीं लगता.

यदि आप बीमार हैं, तो किसी चीज़ की तबियत नहीं होती. अच्छा से अच्छा हास्य नाटक आ रहा हो, तो हँसी नहीं आती. बुख़ार हो, तो जीभ कड़वी होती है, और किसी व्यंजन का स्वाद नहीं आता. शरीर में दर्द हो, तो कितना ही अच्छा मखमली बिस्तर और AC लगा हो, नींद नहीं आती.

जीवन का आनंद लेने के लिए शरीर ही एक मात्र साधन है. यानि हम जो कुछ भी अनुभव करते हैं― सुंदर सा कोई दृश्य हो या स्वादिष्ट भोजन हो या मधुर संगीत―सब कुछ शरीर के माध्यम से ही हम अनुभव कर पाते हैं. शरीर के ही विभिन्न यंत्रों से ये सारे अनुभव हमारे अंदर प्रवेश करते हैं. साधन ही अस्वस्थ हो, तो सारे आनंद बेकार.

जीवन में कमाना भी ज़रूरी है, लेकिन इतना भी क्या कि सोने और खाने के लिए भी समय न निकल पाए?